३: प्रतियोगिनी के घर
“श्यामादन्यो नहि नहि नहि प्राणनाथो ममास्ते।”
उद्धवदूत।
शेर अफगन इस समय बंगालकी सूबेदारीमें बर्द्धमानमें रहते थे; मोती बीबी बर्द्धमानमें आकर शेर अफगनके महलमें उतरी। शेर अफगनने सपरिवार उसकी अभ्यर्थना कर बड़े आदरके साथ आतिथ्य किया। जब शेर अफगन और उसकी स्त्री मेहरुन्निसा आगरेमें रहते थे तो उनका मोती बीबीसे काफी परिचय था! मेहरुन्निसासे तो वास्तवमें प्रेम था; दोनों बाल्यसखी थीं; बादमें दोनों ही साम्राज्यलाभके लिए प्रतियोगिनी हुई। इस समय दोनोंके एकत्र होनेपर उनमें एक मेहरुन्निसा अपने मनमें सोच रही थी—“भारतवर्षका कर्त्तव्य विधाताने किसके भाग्यमें लिखा है? विधाता जानते हैं, सलीमशाह जानते हैं, और तीसरा यदि कोई जानता होगा, तो लुत्फुन्निसा जानती होगी। देखें, लुत्फुन्निसा इस बारेमें कुछ बताती है या नहीं!” इधर मोती बीबी भी मेहरका हृदय टटोलना चाहती हैं।
मेहरुन्निसाने उस समय समूचे हिन्दुस्तानमें प्रधान रूपवती और गुणवतीके रूपमें ख्याति प्राप्त की थी। वास्तवमें संसारमें वैसी कम स्त्रियोंने जन्म लिया था। सौंदर्यका वर्णन करनेवाले इतिहासकारोंने अपने इतिहासमें उसे अद्वितीय सुन्दरी बताया है। उस समयकी विद्यामें कितने ही पुरुष उस समय उसकी बराबरी नहीं कर सकते थे। नृत्य-गीतमें मेहर अद्वितीय थी; कविता-रचना या तूलिका-कलामें वह लोगोंको मुग्ध कर देती थी। उसकी सरस वार्ता उसके सौंदर्यसे भी अधिक मोहक थी। मोती बीबी भी इन सब गुणोंमें न्यून न थी। आज ये दोनों ही चमत्कारिणी प्रतियोगिनियाँ एक दूसरेके मनकी थाह लेनेके लिए बैठी हैं।
मेहरुन्निसा खास कमरेमें बैठी तस्वीर बना रही थी। मोती मेहरकी पीठकी तरफ बैठी तस्वीर देख रही थी और पान चबा रही थी। मेहरुन्निसाने पूछा—“तस्वीर कैसी हो रही है?” मोती बीबीने उत्तर दिया—“तुम्हारे हाथकी तस्वीर जैसी होनी चाहिए वैसी ही हो रही है! दुःख यही है कि कोई तुम्हारी बराबरीका कलाकार नहीं है।”
मेह०—“अगर यही बात हो, तो इसमें दुःख किस बातका है?”
मोती—“तुम्हारी बराबरीका यदि कोई होता, तो तुम्हारे इस चेहरेका आदर्श रख सकता।”
मेह०—“कब्रकी मिट्टीमें चेहरेका आदर्श रहेगा!”
मोती—“बहन! आज हृदयकी हास्यप्रियतामें इतनी कमी क्यों है?”
मेह०—“नहीं, प्रसन्नतामें कमी तो नहीं है। फिर भी, कल सबेरे ही जो तुम मुझे त्यागकर चली जाओगी, इसको कैसे भूल सकती हूँ! और दो दिन रहकर तुम मुझे कृतार्थ क्यों नहीं किया चाहती?”
मोती—“सुखकी किसे इच्छा नहीं होती? यदि वश चलता तो मैं क्यों जाती? लेकिन क्या करूँ, पराधीन हूँ।”
मेह०—“मुझपर अब तुम्हारा वह प्रेम नहीं। यदि रहता, तो तुम अवश्य रह जातीं। आई हो, तो रह क्यों नहीं सकती?”
मोती—“मैं तो तुमसे सब कह चुकी हूँ। मेरा छोटा भाई मुगल सैन्यमें मंसबदार है। वह उड़ीसाके पठानोंके युद्धमें आहत होकर संकटमें पड़ गया था। मैं उसकी ही विपद्की खबर पाकर बेगमसे छुट्टी लेकर आयी थी। उड़ीसामें बहुत दिन लग गये, अब अधिक देर करना उचित नहीं। तुमसे बहुत दिनोंसे मुलाकात हुई न थी, इसलिए यहाँ दो दिन ठहर गयी।”
मेह०—“बेगमके पास किस दिन पहुँचना स्वीकार कर आई हो?”
मोती बीबी समझ गयी कि मेहर व्यंग कर रही है। मार्मिक व्यङ्ग करनेमें मेहर जैसी निपुण है, वैसी मोती नहीं। लेकिन वह अप्रतिभ होनेवाली भी नहीं है उसने उत्तर दिया—‘भला’ तीन महीने की यात्रामें दिन भी निश्चित कर बताया जा सकता है? लेकिन बहुत दिनों तक विलम्ब कर चुकी; और अधिक विलम्ब असन्तोषका कारण बन सकता है।’
मेहरने अपनी लोकमोहिनी हँसीसे हँसकर कहा—“किसके असन्तोषकी आशंका कर रही हो? युवराजकी या उनकी महिषी की?”
मोती बीबीने थोड़ा अप्रतिभ होकर कहा—“इस लज्जाहीनाको क्यों लजाती हो? दोनोंको असन्तोष हो सकता है।”
मेह०—“लेकिन मैं पूछती हूँ—तुम स्वयं बेगम नाम क्यों धारण नहीं करतीं? सुना था? कुमार सलीम तुम्हारे साथ शादी कर तुम्हें अपनी बेगम बनाना चाहते हैं। उसमें क्या देर है?”
मो०—“मैं स्वभावकी स्वाधीन ठहरी। जो कुछ स्वाधीनता है उसे क्यों नष्ट करूँ? बेगमकी सहचारिणी होकर आसानीसे उड़ीसा भी आ सकी, सलीमकी बेगम होकर क्या इस तरह आ सकती?”
मे०—“जो दिल्लीश्वरकी प्रधान महिषी होगी, उसे उड़ीसा अनेकी जरूरत?”
मो०—“सलीमकी प्रधान महिषी हूँगी, ऐसी स्पर्द्धा तो मैंने कभी नहीं की। इस हिन्दोस्तानमें दिल्लीश्वरकी प्राणेश्वरी होने लायक तो एक मेहरुन्निसा ही है।”
मेहरुन्निसाने सर नीचा कर लिया। थोड़ी देर चुप रहनेके बाद बोली—“बहन! मैं नहीं जानती कि वह बात तुमने मुझे दुःख पहुँचानेके लिये कही, या मेरी थाह लेनेके लिए। लेकिन तुमसे मेरी भीख है मैं शेर बीबी हूँ, हृदयसे उसकी दासी हूँ, भूलकर ऐसी बात न करो।”
निर्लज्जा मोती तिरस्कारसे लजाई नहीं वरन् उसने और भी सहयोग पाया। बोली—“तुम जैसी पतिगतप्राणा हो, यह मैं अच्छी तरह जानती हूँ। इसीलिये तो तुमसे यह बात मैंने कही है। सलीम अभी तक तुम्हारे सौन्दर्यको भूल नहीं सके हैं, मेरे कहनेका यही तात्पर्य है। सावधान रहना।”
मे०—“अब समझी। लेकिन डर किस बात का?”
मोती बीबीने जरा इधर-उधर करनेके बाद कहा—“वैधव्यकी आशंका।”
यह कहकर मोती मेहरुन्निसाके चेहरेपर एक गहरी निगाह डाल कुछ समझनेकी चेष्टा करने लगी, लेकिन मेहरुन्निसाके चेहरेपर डर या प्रसन्नताके कोई भी लक्षण दिखाई न दिये। मेहरुन्निसा ने बड़े ही घमण्डके साथ कहा—“वैधव्यकी आशंका! शेर अफगन अपनी रक्षा करनेमें कमजोर नहीं है। विशेषतः अकबरके शासनमें उनका लड़का भी बिना दोषके दूसरे का प्राण नष्ट कर बच नहीं सकता।”
मोती०—“यह सच है, लेकिन आगरेके ताजे समाचारोंसे मालूम हुआ है कि अकबर बादशाहका अन्तकाल हो चुका है। सलीम सिंहासनारूढ़ हुए हैं। दिल्लीश्वरका दमन कौन कर सकता है?”
मेहरुन्निसा आगे कुछ सुन न सकी। उसका समूचा शरीर सिहर और काँप उठा। उसने फिर अपना सिर नीचा कर लिया। उसकी दोनों आँखोंसे आँसूकी धारा बह गई। मोती बीबीने पूछा—“क्यों रोती हो?”
मेहरुन्निसा एक ठण्ढी साँस खींचकर बोली—“सलीम हिन्दोस्तान के तख्तपर है लेकिन मैं कहाँ हूँ?”
मोती बीबीका मनस्काम सिद्ध हुआ। उसने कहा—“आज भी तुम युवराजको एक क्षणके लिए भी भूली नहीं?”
मेहरुन्निसाने गद्गद स्वरमें कहा—“कैसे भूलूँगी! अपने जीवन को भूल सकती हूँ, लेकिन युवराज को भूल नहीं सकती। लेकिन सुनो बहन! एकाएक हृदयका आवरणपट खुल गया और तुमने सारी बातें जान लीं। लेकिन तुम्हें मेरी कसम है, यह बात दूसरेके कानमें न पहुँचे।”
मोतीने कहा—“अच्छा ऐसा ही होगा। लेकिन सलीम जब यह सुनेंगे कि मैं बर्द्धमान गयी थी, तो वह अवश्य पूछेंगे कि मेहरुन्निसाने मेरे बारेमें क्या कहा, तो मैं उनसे क्या कहूँगी?”
मेहरुन्निसाने कुछ देर सोचकर कहा—“यही कहना कि मेहरुन्निसा हृदयमें तुम्हारा ध्यान करेगी। प्रयोजन होनेपर उनके लिए प्राण तक विसर्जन कर सकती है। लेकिन अपना कुल और मान समर्पण नहीं कर सकती। इस दासीका स्वामी जब तक जीवित है, तब तक वह दिल्लीश्वरको मुँह नहीं दिखा सकती और यदि दिल्लीश्वर द्वारा मेरे पतिका प्राणान्त होगा तो इस जन्ममें स्वामीहन्ता के साथ मिलन हो न सकेगा।”
यह कहकर मेहरुन्निसा अपने स्थानसे उठकर खड़ी हो गयी। मोती बीबी आश्चर्यान्वित होकर रह गई। लेकिन विजय मोती बीबीकी ही हुई। मेहरुन्निसाके हृदयका भाव मोती बीबीने निकाल लिया। मोती बीबीके हृदय की आशा या निराशाकी छाँह मेहरुन्निसा पा न सकी। जो अपनी विलक्षण बुद्धिसे बादमें दिल्लीश्वर की ईश्वरी हुई, वह बुद्धि-चातुरीमें मोती बीबीके सामने पराजिता हुई। इसका कारण? मेहरुन्निसा प्रणयशालिनी है और मोती बीबी केवल स्वार्थपरायणा।
मनुष्य-हृदयकी विचित्र गतिको मोती बीबी खूब पहचान सकती है। मेहरुन्निसाके बारेमें हृदयमें आलोचना कर जिस सिद्धान्तपर वह उपनीत हुई, अन्तमें वही सिद्ध हुआ। वह समझ गई कि मेहरुन्निसा वास्तव में जहाँगीरकी प्रणयानुरागिनी है; अतएव नारी दर्पवश अभी चाहे जो कहे, कालान्तरमें सुयोग उपस्थित होनेपर वह अपने मनकी गतिको रोक न सकेगी। बादशाह अपनी मनोकामना अवश्य सिद्ध करेंगे।
इस सिद्धान्तपर उपनीत होकर मोती बीबीकी सारी आशा निर्मूल हो गयी। लेकिन इससे क्या मोती बहुत दुखी हुई? यह बात नहीं। इसके बदले उसने स्वयं कुछ सुखका अनुभव ही किया। हृदयमें ऐसा भाव क्यों उदित हुआ, मोती स्वयं भी पहले समझ न सकी। उसने आगरेके लिए यात्रा की; राहमें कितने ही दिन बीते। इन कई दिनोंमें वह अपने चित्तके भावको समझती रही।